एक गरीब किसान और उसकी ईमानदार की कहाँनी

रत्नपुर नाम का एक गांव था । वहां पर एक किसान उसकी पत्नी और दो बच्चे रहते थे किसान बहुत ही गरीब था। पर बहुत ही ईमानदार था वह दिन रात अपने खेत में ईमानदारी से बहुत अधिक मेहनत करता था पर इतना अन्न नहीं हो पाता था कि वह अच्छे से अपने परिवार का अपने बच्चों का पालन पोषण कर सके उनका पेट भर सके । उसकी पत्नी परिवार की दशा देख कर बहुत चिंतित रहती थी।

एक बार की बात है गांव में बहुत तेज सूखा पड़ा चारो तरफ हाहाकार मचा था । किसान के पास ना इतना धन था ना ही पर्याप्त अन्न था की इस समस्या से निपट सकें। उसके बच्चे भूखे मरने लगे।यह सब देख कर उसकी पत्नी उसको समझती है की तुम शहर चले जाओ वहां पर कोई काम धंधा ढूंढ लो।
जिससे हमारा परिवार चल सके। हमारे बच्चे अच्छे से खा सके पढ़ लिख सके
किसान अपने बच्चों को अपनी पत्नी को अकेला छोड़कर शहर जाना नही चाहता था पर क्या करें मजबूरी में उसे जाना पड़ा ।

अगले सुबह थोड़ा बहुत धन लेकर और फटे पुराने कपड़ों को पहनकर शहर के लिए निकल पड़ता है वह रास्ते से जा रहा था  उसे बहुत जोर की प्यास लगती हैं वह पानी पीने के लिए गंगा तट की तरफ जाता है

उसी समय उस देश की रानी और उसकी सखियां गंगा तट पर स्नान करके जा रही थी ।वह रानी को सर झुका कर सलाम करता है और उन्हें जाते हुए देखता रहता है। वह गंगा तट पर जाकर अपनी प्यास बुझाता है ।

जो ही वहां से हो जाने लगता है वह देखता है कि रानी अपने रत्न जड़ित आभूषण भूल वस वही गंगा तट पर छोड़ कर चली गई हैं । एक पल वह सोचता है कि मुझे कोई देख नहीं रहा है अगर मैं उसको ले लूं तो मेरी सारी गरीबी दूर हो जाएगी ।अपने बच्चों का पालन पोषण कर सकूंगा , उन्हें अच्छे कपड़े पहना सकता हूं फिर वह सोचता है नहीं नहीं यह पाप है , यह आभूषण मेरे नहीं है ।

 

अगर कोई नहीं देख रहा है फिर भी वह परमात्मा तो मुझे देख रहा है बाद में इसकी सजा मुझे वह देगा । इसलिए वह उसको लेकर राज महल की तरफ चल पड़ता है । उस देश का राजा देव प्रताप बहुत ही दयालु और उदार राजा था । महल के दरवाजे पर पहुंच कर वह सैनिकों से कहता है कि मुझे अंदर जाने दे मुझे राजा से मिलना है ।

 सैनिकों ने उसका आने का कारण पूछा पर कहता नहीं , मैं राजा को ही बताऊंगा । सैनिक उसको राजमहल ले जाते हैं और वह राजा के सामने उपस्थित होता है ।

महाराज उस दीन हीन किसान को देखकर बड़े ही विनम्र भाव से उसके आने का कारण पूछते हैं

उसने महाराज को प्रणाम किया और आभूषण को दिखाते हुए बोला महाराज यह आभूषण रानी जी सुबह स्नान के समय भूलवश गंगा तट पर ही छोड़ कर चली गई थी यह मैं आपको देने आया हूं |राजा उसकी ईमानदारी से आश्चर्यचकित हो गया ।

राजा ने कहा देखने में तुम बहुत ही गरीब लग रहे हो। वस्त्र भी तुम्हारे फटे पुराने है। तुम चाहते तो उसको लेकर अपनी गरीबी दूर कर सकते थे परंतु तुमने ऐसा नहीं किया क्या मैं जान सकता हूं क्यों?

किसान हाथ जोड़कर बोलता है।
हे राजन् मैं गरीब जरूर हूं पर मैं अपने ईमान का पक्का हूं भले मुझे कोई नहीं देख रहा है लेकिन वह परमात्मा हर वक्त मुझे देख रहा है और मेरे हर कर्मों का फल एक दिन जरूर देगा। राजा उसकी ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हुवा और कहा बोलो तुम्हें क्या चाहिए ।

किसान बोलता है महाराज मुझे धन का लालच नहीं , बस दो वक्त की रोटी मिल जाए अपनी बीवी बच्चों का पेट भर सकूं ,मैं अपने परिवार का अच्छे से पालन पोषण कर सकूं ,वही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। ।
राजा उसकी ईमानदारी से प्रसन्न होकर अपने कोषागार का प्रमुख सुरक्षा देखरेख नियुक्त करता है और अपने राज में घोषणा करवाता है । जब यह सब उसके पत्नी और बच्चे सुनते हैं तो बहुत खुश होते हैं।

इस प्रकार किसान अपनी ईमानदारी के बल पर सब कुछ पा लेता है ।अब वह खुशी खुशी से अपनी पत्नी व बच्चो के साथ रहने लगता हैं।

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